Last Updated on 12 May 2024 by nidariablog.com
‘Mother’s Day’ is on 12 May 2024. ‘मदर्स डे’ या ‘मातृ दिवस’ आज यानि 12 मई 2024 को मनाया जा रहा है। ‘माँ’ दुनियाभर में सर्वाधिक आदरणीय संबोधन है| माँ को चाहे किसी भी भाषा में पुकारें (जैसे मदर, मॉम, मम, माता, माई, ताई, बाई, आई, मम्मी, मैया), हर संबोधन में सदैव उच्चतम आदर भाव समाहित रहता है|
‘मदर्स डे’ या ‘मातृ दिवस’ को क्यों मनाया जाता है।
मातृ दिवस को मनाने का श्रेय अमरीका की महिला सामाजिक कार्यकर्ता, एना जार्विस को जाता है जिनका जन्म 1 मई 1864 को वेस्ट वर्जीनिया के वेबस्टर में हुआ और जो आज भी “मदर ऑफ मदर्स डे” के नाम से जानी जाती हैं।
एना जार्विस की माँ, एन रीव्स जार्विस, एक शांति कार्यकर्ता थीं और वे अमरीकी गृहयुद्ध के दौरान मदर्स डे नेटवर्क का आयोजन करती थीं जिसका उद्देश्य उनके क्षेत्र ग्रेफ़्टन, वेस्ट वर्जीनिया में फैली एक बीमारी की वजह से हुई उच्च शिशु और बाल मृत्यु दर को कम करना था। एन रीव्स महिलाओं को साफ-सफाई से संबंधित बातों के बारे में सिखाती थीं। सन् 1905 में एन रीव्स जार्विस की मृत्यु हो गई।
अपनी माँ के निधन के बाद उनके द्वारा किए कार्यों से प्रेरित होकर एना जार्विस ने बीसवीं सदी की शुरुआत में दुनिया भर की माताओं के त्याग और बलिदान के सम्मान में एक आधिकारिक दिन तय करने के लिए एक अभियान शुरू किया। अपने इस अभियान का व्यापक प्रचार और प्रसार करने के लिए उन्होंने कई समाचार पत्रों, राजनेताओं और अन्य कई विशिष्ट व्यक्तियों को पत्र लिखे। अंततः उनके अथक प्रयासों को सफलता मिली और सन् 1914 में अमरीका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने मई महीने के दूसरे रविवार को “मदर्स डे” के रूप में नामित करते हुए एक उद्घोषणा पर हस्ताक्षर कर किए। इस उद्घोषणा के अनुसार “मदर्स डे” को संयुक्त राज्य अमेरिका में आधिकारिक अवकाश के रूप में भी स्थापित किया गया।
एना जार्विस का निधन 24 नवंबर 1948 को हुआ लेकिन “मदर्स डे” स्थापित करने के उनके प्रयासों को आज भी याद किया जाता है। आज ‘मदर्स डे’ दुनियाभर के देशों में मनाया जाता है।
‘मदर्स डे’ या ‘मातृ दिवस’ कब मनाया जाता है।
‘मदर्स डे’ मनाने की शुरुआत संयुक्त राज्य अमरीका से हुई। आज, कई देशों में ‘मदर्स डे’ मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। वहीं यूनाइटेड किंग्डम में यह ‘मदरिंग संडे’ के नाम से आमतौर पर मार्च में लेंट के चौथे रविवार को सोलहवीं शताब्दी से मनाया जा रहा है। विविध देशों में ‘मदर्स डे’ को अलग-अलग रीति-रिवाज़ों के अनुसार मनाया जाता है हाँलाकि मनाने का भाव एक जैसा ही है।
‘मदर्स डे’ या ‘मातृ दिवस’ कैसे मनाया जाता है।
‘मदर्स डे’ का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर की माताओं के प्रति चिंतन और उनके अतुलनीय त्याग, प्रेम और समर्पण के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करना है। जैसे जैसे समय बीतता गया, शुभकामना संदेशों, चॉकलेटों, फूलों और अन्य उपहारों के साथ साथ आज ‘मदर्स डे’ पर डिजिटल गिफ्ट्स आदि का प्रचलन भी बढ़ गया है। दूसरी तरफ, ‘मदर्स डे’ के दिन कुछ लोग जरूरतमंद माताओं की मदद करने के लिए दान और अन्य धर्मार्थ कार्य भी करते हैं।
कई बच्चे ‘मदर्स डे’ के दिन अपनी माताओं के साथ गुणवत्ता समय बिताने के लिए पिकनिक पर जाते हैं। इस दिन माताओं के साथ अन्य पारिवारिक रिश्तों जैसे मौसी, चाची, दादी आदि को भी विशेष सम्मान दिया जाता है।
क्या ‘मदर्स डे’ या ‘मातृ दिवस’ से मिलता जुलता कोई और भी दिवस मनाया जाता है?
आपको बता दें कि ‘मदर्स डे’ के अलावा भी दुनियाभर में प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है जो महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक उपलब्धियों और लैंगिक समानता पर केंद्रित होता है।
आइए, अब उन पहलुओं को जान लेते हैं जो ‘मदर्स डे’ को स्पेशल या खास बनाते हैं।
माँ के बहुआयामी रूप
माँ जाति, धर्म, रंग एवं देश की सीमाओं से परे सदैव पूजनीय है| वह देवतुल्य ही नहीं अपितु देवताओं के लिए भी पूजनीय है| माँ संतोष, तप, धैर्य, मेहनत और जीवट की अनुपम मिसाल है| अपने घर परिवार को पालने, सँवारने और एकजुट रखने में ही वह अपना संपूर्ण जीवन बिता देती है|
माँ अति जटिल संबंधों के जाल में रहकर भी एक माँ, पत्नी, सास, बहू और बेटी जैसे रिश्तों को बखूबी निभाती है| रिश्तों की कसौटी पर खरा उतरने को कटिबद्ध वह अपनी ससुराल और मायके के साथ तारतम्य बिठाती है और परिवार के सभी जनों को माला की तरह एक सूत्र में पिरोए रखती है|
सबसे पहले माँ सिखाती है संस्कार अपने बच्चे को
बच्चे के भौतिक संसार में आने से पहले से ही माँ का उसके साथ मूक संवाद शुरू हो जाता है| वह ममता, त्याग, समर्पण, स्नेह और सहिष्णुता आदि भावों को एक अथाह सागर की तरह अपने दिल की गहराइयों में बसाए यथोचित रूप से अपने बच्चों का सर्वांगीण विकास करती है| बच्चों के सर्वप्रथम शिक्षक के रूप में माँ उन्हें भाषा, मानवीय मूल्यों, संस्कारों और संस्कृति से अवगत कराती है और उनमें नैतिकता के सर्वोच्च गुणों को विकसित करने का प्रयास करती है| वह एक तपस्विनी की भाँति बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा करने और उन्हें एक अच्छा इंसान बनाना अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा मक्सद बना लेती है| इसके लिए वह अपने शौक, समय, सुख और यहाँ तक कि सगे-संबंधियों को भी छोड़ने के लिए सदैव तैयार रहती है|
अपने बच्चों को सजा-धजा कर और काला टीका लगाकर जब माँ उन्हें अपने गले लगाकर या उन्हें चूम कर स्कूल भेजती है तो उसकी आँखों में एक अप्रत्याशित चमक और चेहरे पर विस्मित कर देने वाली मुस्कान खिल उठती है| यही वह जादू है जिससे बच्चा अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है और जो उसमें आत्मबल, स्वाभिमान और विश्वास जैसे वांछित गुणों को बढ़ाता है|
माँ अपने बच्चे पर आँच नहीं आने देती
माँ के लिए उसके बच्चे उसकी आँख का तारा होते हैं| वह अपने बच्चों के दुःख को एकदम भाँप लेती है और उन्हें किसी कीमत पर दुःखी नहीं देख पाती| वह उनकी इस तरह हिफाज़त करती है जैसे धूप, बारिश, सर्द हवाओं या आँधी-तूफान के थपेड़ों को खुद सहते हुए कोई सुमन एक नन्हें भँवरे को अपनी कोमल पंखुड़ियों में इस प्रकार समेट लेता है ताकि वह आहत ना हो| माँ के हाथों का स्पर्श एक जादुई करिश्मे की तरह बच्चे के दुःखों को इस प्रकार कम या दूर कर देता है जैसे ममतारूपी नदी की कोई तीव्र धारा पूरे वेग से बहते हुए अपनी राह में आए कचरे को अपने साथ बहा दूर फेंक देती है| माँ अपने बच्चों की उन बातों को भी बखूबी समझ लेती है जो वे उससे नहीं कहते| उसमें समर्पण का भाव इस कदर गहराया होता है कि वह स्वयं अपनी आज़ादी को खोकर अपने आप को बच्चों के अधिकार में छोड़ देती है| ऐसा कहना कतई अतिशयोक्ति नहीं कि माँ अपने बच्चों के लिए ही जीती है| बच्चे माँ से अपनी हर बात अधिकारपूर्वक मनवा लेते हैं जबकि माँ उनसे अनुनय-विनय ही करती है|
अपने बच्चों के लिए सब कुछ त्याग देती है माँ
अपने बच्चों की ज़िंदगी सफल बनाने हेतु माँ एक पार्श्व कलाकर की भाँति निरंतर काम में लगे रहकर समय को पीछे छोड़ते हुए बड़ी कुशलता से अपने मक्सद को अंजाम देती जाती है| बच्चों को पता भी नहीं चल पाता कि माँ कब सोती है, कब जागती है और कब खाती है| वह बीमारी में भी अपने बच्चों की खातिर काम में लगी रहती है| अपने बच्चों के लिए वह न जाने कितनी रातें जागकर काटती है ताकि वे आराम से सो सकें| किसी अन्य कार्य में कितनी भी व्यस्त क्यूँ न हो, बच्चों को जरूरत पड़ने पर वह अपने सभी काम-काज छोड़कर उनके लिए तत्काल हाज़िर रहती है| वह भूखे रहकर भी अपने बच्चों को अच्छी तरह खाना खिलाती है| माँ के लिए उसका परिवार और बच्चे ही उसकी दुनिया होते हैं और उनको पालना वह अपना सबसे बड़ा धर्म मानती है|
दुनिया परिवर्तनशील है और बदलते परिवेश में परिवार की संरचना में मूलभूत बदलाव के बावज़ूद माँ का प्यार अपने बच्चों के लिए हमेशा एक सा रहता है| बच्चे बड़े होते जाते हैं माँ भी बूढ़ी हो जाती है किंतु उसका प्यार उम्र के पड़ाव, ऋतुओं के बदलाव, रात-दिन के चक्र, अमीरी-गरीबी के दौर, सुख की छाँव और दुःख के घने, काले बादलों से प्रभावित हुए बिना समरस रहता है, उसमें लेशमात्र भी कमी नहीं आती| बच्चों के पालन पोषण के दौरान तमाम विषम परिस्थितियों से गुजरते हुए और अनेकों दुःख तकलीफों को झेलते हुए भी वह एक निर्भीक और निर्मल सरिता की तरह अपनी मंजिल की ओर बढ़ती चली जाती है|
माँ के विशाल हृदय में ममता के अनगिनत स्रोत अनवरत बहते रहते हैं| यहाँ तक कि कभी कभी तो खुद जन्म ना देने के बावज़ूद भी वह बच्चों का उसी तरह पालन-पोषण करती है जिस प्रकार अपनी कोख से जन्म देने पर करती है| माँ बिना किसी शर्त बच्चों के लिए सहर्ष सब कुछ करने को सदैव तैयार रहती है| वह कभी नहीं कहती कि उसके स्नेह के बदले बच्चे भी उसी तरह उसे प्रेम करें| वह तो दाती है| माँ अपने बच्चों को सब कुछ इतनी सहजता से देती है कि उसके पीछे कितना समर्पण, त्याग, लगन और मेहनत है किसी का ध्यान ही नहीं जाता| वह एक दैवी शक्ति की तरह बच्चों की हर ज़रूरत को पूरा करने में अपना समस्त जीवन अर्पण कर देती है और बच्चे यह सोच भी नहीं पाते कि माँ को क्या दुःख है, उसकी अपनी जरूरतें, अपेक्षाएं, शौक और आकांक्षाएं क्या हैं| जब तक बच्चों को इस बात का एहसास होता है माँ अपनी ज़िंदगी के हसीन पलों और सुनहरे दौर को बच्चों के भविष्य पर न्यौछावर कर बूढ़ी हो चुकी होती है|
अपने बच्चों के लालन-पालन में उसने क्या खोया इसकी वह कभी किसी से शिकायत नहीं करती और न ही वह अपने त्याग और बलिदान के बदले नेकनामी की अपेक्षा रखती है| उसे तो अपने बच्चों को बड़ा होते और खुश रहते देख जो खुशी मिलती है वही उसके लिए सबसे बड़ा संतोष है|
माँ बूढ़ी हो जाती है और बच्चों को ख्याल भी नहीं रहता
बच्चों के युवावस्था, प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था प्राप्त कर लेने पर भी माँ उनसे उसी तरह प्यार करती है जैसा उनके बचपन में करती थी| यह बड़े दुःख की बात है कि माँ अपने बच्चों को ताउम्र हाथों हाथ रखती है तो भी बुढ़ापे में उन कोमल और झुर्राते हाथों को पकड़कर थामने, सहलाने, चूमने और सहारा देने का बच्चों को ख्याल तक नहीं आता|
निष्कर्ष
संक्षेप में, ‘मदर्स डे’ पर हमें अपनी माँ को उनकी महत्ता का अहसास कराने का शानदार मौका मिलता है। इसे एक खास अवसर मानकर हमें अपनी माँ को विशेष धन्यवाद देना चाहिए और उनके प्रति समुचित सम्मान व्यक्त करना चाहिए।
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