Last Updated on 6 July 2024 by nidariablog.com
सफल लोगों की विशेषता
असम्भव कामों को सम्भव बनाने वालों में गज़ब की हिम्मत होती है| अपनी मेहनत और लगन से वे ऐसे महान कामों को अंजाम देते हैं जिन्हें करना तो दूर उनके बारे में सोचना भी हर किसी के बस की बात नहीं| वे जीत की कल्पना पहले से ही अपने मन में संजो कर जी जान से अपने मक्सद को पाने में जुट जाते हैं| वे असफलता के भय से निष्क्रिय होकर नहीं बैठ जाते बल्कि हार जाने की स्थिति में दुगने उत्साह से हार को जीत में बदलने के लिए जमीन-आसमान एक कर देते हैं| अपनी मेहनत और हिम्मत के बूते रातों-रात महल खड़े कर देते हैं, खून-पसीना एक कर बंजर भूमि को लहलहाते खेतों में तब्दील कर देते हैं, सत्ता का तख्ता पलट नए शासन का निर्माण कर देते हैं और अकेले ही करोड़ों लोगों की विचारधारा बदल उन्हें अपने साथ लिए चलते हैं| ऐसे असाधारण काम करने वाले साधारण व्यक्ति भय और आलस्य को त्याग हिम्मत और मेहनत को ही अपना दीन-ईमान मानकर अपने रास्ते खुद बनाते हुए मंजिल तक पहुँच कर ही दम लेते हैं| वास्तव में सावन की ठंडी फुहारों का असली मज़ा भी उन्हीं को मिलता है जो जेठ की तपती दुपहरी में कड़ी मेहनत के दौर से गुजरते हैं|
हार मानने वाले कभी सफल नहीं होते
जीवन में हार मानने या निराशावादी होने के लिए परिश्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती| लेकिन आलस्य और भय तेजी से पतन की ओर ले जाते हैं| बुरा कार्य करने की इच्छा मात्र सोच को संकीर्ण बना देती है और अच्छे-बुरे में भेद करने की क्षमता और दूरदर्शिता को नष्ट कर देती है| बेईमानी और चालाकी के बीजों से यदि सफलता उपजती भी है तो उससे मिली खुशी क्षणिक होती है, स्थायी खुशी तो मेहनत से प्राप्त सफलता से ही मिलती है|
काम को मन ही मन कठिन समझकर हाथ पर हाथ रखे बैठने से भाग्य नहीं सँवरता| अधिकतर कामों में सफल होने के लिए केवल एक छोटे से प्रयास की जरूरत होती है जो ज़िंदगी को ठीक उसी तरह बदल सकता है जिस प्रकार कोई बीज एक छोटी सी बूँद से प्रस्फुटित हो अंकुरित हो उठता है| लेकिन प्रयास करने की बजाय एक कूपमंडूक की भाँति ज़िंदगी बिताते हुए भाग्य को कोसना भला कौन सी बुद्धिमानी है| सतत प्रयास जीत की ओर ले जाने वाली सीढ़ी है| सकारात्मक सोच सतत प्रयास की ओर ले जाती है जबकि नकारात्मक सोच हार और जीत के बीच की दूरी को और बढ़ा देती है और मंजिल तक नहीं पहुँचने देती|
सफल होने के रहस्य
बिना मेहनत का जीवन तो ऐसे पेड़ के समान है जिस पर कभी फल नहीं लगता| कभी किसी पंछी को देखो वह कितनी मेहनत से एक एक तिनका जोड़कर अपना घोंसला तैयार करता है, तितली कितनी मेहनत से एक फूल से दूसरे फूल पर जा जाकर पराग एकत्रित करती है, मकड़ी कितनी शिद्दत से ताना-बाना बुनती है| फिर इंसान तो सबसे बुद्धिमान और ताकतवर है जो खूंखार से खूंखार जानवर को भी अपने वश में कर लेता है| इंसान चाहे तो अपने इरादों को बुलंद कर ऊँचाइयों को पा सकता है| किंतु अधूरे मन से किया गया प्रयास पर्याप्त नहीं होता| सफलता पाने के लिए अपने इरादों को चट्टान की तरह मजबूत बनाना पड़ता है| दूसरों से आगे बढ़ने की इच्छा रखने वालों को पहले स्वयं से आगे बढ़ना होता है|
मेले-ठेले, तीज-त्योहार और रास-रंग जीवन के लिए जरूरी तो होते हैं पर ज़िंदगी का लक्ष्य नहीं होते| जो इनमें खोकर आलसी और अकर्मण्य बन जाता है वह ज़िंदगी में कभी सफलता का स्वाद नहीं चख पाता| बिना मेहनत किए हम उसे भी खो देते हैं जो कुछ हमारे पास होता है| आलस्य और भीरुता कर्महीन बनाते हैं और सफलता के रास्ते में सबसे बड़े बाधक हैं| बिन आई विपत्ति से डरना या विफल होने का भय एक अपारदर्शी शीशे की तरह मस्तिष्क पर छा जाता है जिससे जीवन की सुनहरी किरण दिखाई नहीं देती| उस दिव्य और सुखद प्रकाश की अनुभूति के लिए भयहीन होना आवश्यक है| भोर के सूरज की रौशनी भी उन्हीं के अँधियारे मन को प्रदीप्त करती है जो अपने मन के द्वार निडरता से उसके लिए खोल देते हैं|
अपने कामों के लिए दूसरों पर बोझ बनने की अपेक्षा स्वयं प्रयत्नशील रहकर और यथायोग्य मदद लेकर आगे बढ़ने वाले हारकर भी हार नहीं मानते| जीत की खुशी का सच्चा आनंद तो उन्हीं को प्राप्त होता है क्योंकि उन्हें हार से होने वाले दुःख का एहसास होता है| सीखने की इच्छा न रख औरों के भरोसे जीने वाला कभी सुखी नहीं रह पाता बल्कि दूसरों पर बोझ बनकर उनको भी दुःख देता है| जो स्वयं अभ्यास और मेहनत को अपने जीवन का हिस्सा नहीं बनाते उन्हें कदम कदम पर अपमानित होना पड़ता है| त्याग से किये गए कर्म की महत्ता वही जान सकता है जिसने खुद त्याग किया हो| जो हमेशा औरों के त्याग से फलित कर्म से आनंदित महसूस करता है उसका आनंद क्षणभंगुर है| सच्चा आनंद कभी नष्ट नहीं होता| इसलिए सच्चा आनंद ही प्राप्ति योग्य है|
महापुरुष जन्म से महान नहीं होते बल्कि अपने अच्छे कर्मों के परिणामस्वरूप महान बनते हैं| वे सदा प्रसन्नचित्त, शांत और सक्रिय रहते हैं| अपनी सरल सोच, आत्मविश्वास और कुछ कर गुजरने की आग दिल में लिए वे ऐसे काम करते हैं जो औरों को करिश्मा प्रतीत होते हैं| ज़िंदगी के दुःख या रेले-मेले उन्हें रोक नहीं पाते और उनके बीच से मुस्कुराते हुए वे अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाते हैं|
ज़िंदगी भर दुःखी जीवन व्यतीत करने और स्वयं को धिक्कारने से बेहतर है लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयास करना और उसको पाने की प्रबल लालसा अपने भीतर पैदा करना|
सफल होने का कोई निश्चित शारीरिक, मानसिक या बौद्धिक मापदंड नहीं है| सफल होने के लिए शारीरिक बलिष्ठता या प्रखर बुद्धि का होना अपेक्षित नहीं है| सफलता तो कोई भी पा सकता है| बस उसे पाने के लिए मेहनत और शिद्दत से प्रयत्न करने की ज़रूरत है| सफलता किसी की निजी धरोहर भी नहीं, न ही विरासत में मिलती है| वह तो हाथ फैलाए इंतज़ार करती है कि कोई हिम्मतवर आए और उसका आलिंगन करे| मशहूर गीतकार शकील बदायूँनी द्वारा लिखे गीत की ओजपूर्ण पंक्तियों “गिर गिर के मुसीबत में सँभलते ही रहेंगे, जल जाएं मगर आग पे चलते ही रहेंगे” में जीवन का संदेश है| सफल होने का ऐसा जज़्बा जिसके दिल में हो तो भला कौन सी बला उसे सफलता से दूर रख सकती है|
नमन है उनके धैर्य और परिश्रम को जिन्होंने बीस वर्षों तक दिन-रात एक कर दुनिया को ताजमहल जैसा बेमिसाल स्मारक दिया, खुले आकाश में उड़ने के सपने को हवाई जहाज बनाकर साकार किया, पहाड़ों के सीनों को चीरकर रास्ते बनाए और दरियाओं का मुख मोड़ दिया| यही नहीं, शारीरिक रूप से अक्षम कई व्यक्तियों के ऐसे उदाहरण हैं जिन्होंने दृढ़ निश्चय और परिश्रम से अपनी अपंगता को अंगूठा दिखाते हुए एक सक्षम की भाँति अपनी ज़िंदगी सँवार ली तथा औरों के लिए प्रेरणा बन गए| युद्ध के मैदान में आग उगलती हुई तोपों के सामने सिर पर कफन बाँधकर अपना सीना तान खड़े हो जाने वाले क्या कभी मरते हैं? जिगर वाले तो आसमान भी अपनी मुठ्ठी में भर लेते हैं|
जीवन में उतार-चढ़ाव आते ही हैं| जहाँ सुख है वहाँ दुःख भी होगा| लेकिन मेहनतकश दुःख में विचलित नहीं होते| दुःखी तो वे होते हैं जिन्हें परिश्रम की आदत नहीं होती| जिन चेहरों पर कड़े अभ्यास के दौरान परेशानी का भाव दिखाई देता है, जीत की खुशी की असली चमक उन्हीं चेहरों पर खिलती है| विपरीत परिस्थितियों में घबराने वाले अपने जीवन पर नियंत्रण नहीं रख पाते| इसलिए जब दुःख का सामना करना ही है और यथासमय अंगारों पर भी चलना है तो क्यूँ न मेहनत-मशक्कत को अपनाया जाए ताकि बुरा समय मंजिल की ओर बढ़ते हुए कदमों को न रोक पाए|
स्वामी विवेकानंद ने कहा है –‘तत्त्वमसि’,‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत’ अर्थात ‘तुम वही ब्रह्म हो’, ‘उठो, जागो और लक्ष्य को प्राप्त किए बिना रुको मत’| अतः डर और आलस्य को त्याग निर्भयता और परिश्रम को अपनाकर निरंतर प्रयत्नशील बनो, तब न तो पर्वत तुम्हारा रास्ता रोक सकेगा, न सागर तुम्हारे प्रयासों पर पानी फेर सकेगा और न ही कोई झंझावात सफलता पाने के तुम्हारे इरादों पर हावी हो सकेगा| तब सफलता झूमते हुए तुम्हें अपनी बाँहों में ले लेगी|
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